उत्तराखंड सरकार को नैनीताल हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने सभीपूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला, गाड़ी व अन्य सरकारी सुविधाओं में छूट देने के लिए बनाए गए कानून को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार 6 महीने के अंदर सरकारी सुविधाएं लेने वाले सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से बाजार के भाव से किराया जमा कराए। किराया उस वक्त तक का देना होगा जब तक पूर्व मुख्यमंत्री ने सुविधाएं ली होंगी।6 महीने में किराया न आने पर सरकार को वसूली की कार्रवाई करने का आदेश दिया है।
कोर्ट के आदेश से बचने के लिए कैबिनेट में पास कराया था कानून
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य सरकार की ओर से बंगला, गाड़ी समेत कई सुविधाएं मिलती थीं। एक समाजसेवी ने इसको हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पिछले साल 3 मई को आदेश देते हुए कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले, गाड़ी आदि सभी सुविधाओं का किराया बाजार भाव से देना होगा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि 6 महीने के दौरान सभी पैसा जमा करें और अगर ऐसा नहीं करते हैं तो सरकार को इनके खिलाफ वसूली की कार्रवाई शुरु करनी होगी। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों को राहत देने के इरादे से राज्य सरकार ने अध्यादेश लाने का फैसला किया। तय हुआ कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों, गाड़ी के किराए का भुगतान सरकार करेगी और उन्हें सभी सुविधाएं पहले की तरह मुफ्त दी जाती रहेंगी। पिछले साल सितंबर में ही इस अध्यादेश पर राज्यपाल ने मुहर लगा दी। जिसके बाद हाईकोर्ट का आदेश निष्प्रभावी हो गया था।
सरकार के फैसले को फिर से दी थी चुनौती
समाजसेवी अवधेश कौशल ने इस अध्यादेश को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसपर सुनवाई करते हुए 23 मार्च को चीफ जस्टिस की कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अवधेश ने यूपी के मामले का जिक्र करते हुए कहा था कि राज्य सरकार का अध्यादेश असंवैधानिक है। यूपी में भी इस तरह का एक्ट आया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। सरकार का यह एक्ट आर्टिकल 14, यानी समानता के अधिकार के खिलाफ है।
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