इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं - News in hindi

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

सोमवार, 29 जून 2020

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे।

दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं।

यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं

दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था।

इसके तहत हिंदू धर्म के अलावा ईसाई, यहूदी, सिख और पारसी सहित अन्य धर्म भी पढ़ाए जाते हैं। स्पेशल कोर्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दर्शन को समझने की पर्याप्त परिपक्वता छात्रों में विकसित हो सके। ये कोर्स दो से चार साल तक के होते हैं।

विजिटिंग प्रोफेसर ने हिंदू धर्म और दर्शनशास्त्र का सिलेबस बनाया

दारुल उलूम से ही पासआउट देश के प्रमुख आलिम मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी इस स्पेशल कोर्स के विजिटिंग प्रोफेसर हैं, जिन्होंने खुद भी प्रमुख 12 उपनिषदों, चार वेदों, गीता और रामायण का अध्ययन किया है। उन्होंने ही यहां हिंदू धर्म और दर्शनशास्त्र का सिलेबस बनाया है।

युवा मौलाना इश्तियाक कासमी ‘चतुर्वेदी’ बताते हैं कि उन्होंने मौलवियत की डिग्री के बाद चारों वेदों, गीता और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया। संस्कृत के विद्वान हैं इसी नाते अपने नाम के साथ ‘चतुर्वेदी’ लिखते हैं। आजकल वह गीता और कुरान के दर्शन पर अपना शोध कर रहे हैं।

वे बताते हैं कि धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के बाद मैंने यह सीखा कि सभी शांति, सद्भाव को लेकर अल्लाह, ईश्वर और परम ब्रह्म के संदेश देते हैं। एक अन्य छात्र मौलाना अब्दुल मलिक कासमी का कहना है,‘इन धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना आंख खोलने वाला अनुभव है। इनके अध्ययन ने मेरा दृष्टिकोण बदल दिया और मुझे दोनों धर्मों की शिक्षाओं और दर्शन में अद्भुत समानता मिली।’

यहां 600-800 साल पुराने ग्रंथ
यहां लाइब्रेरी में दो लाख पुस्तकें और 1,500 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इसमें कई 600-800 साल पुरानी हैं। इसके इंचार्ज शफीक यहां रखे ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण, तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, विष्णु स्मृति का संग्रह दिखाते हैं। कहते हैं इन्हें हमने पूरी श्रद्धा के साथ रखा है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
इंचार्ज शफीक यहां रखे ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण, तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, विष्णु स्मृति का संग्रह दिखाते हैं। कहते हैं इन्हें हमने पूरी श्रद्धा के साथ रखा है।


from Dainik Bhaskar /national/news/the-quran-along-with-the-verses-of-the-gita-ramayana-and-vedas-are-also-being-taught-at-the-islamic-learning-center-darul-uloom-deoband-127458728.html https://ift.tt/2ZjmmB7

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages